"अंतिम पहर, अग्निपथ"

Author: 
Anil Chandela

Anil Chandela was born in Ajmer in 1959. He graduated with a B.Sc. in Biology from Government College, Ajmer (GCA) in 1980.

Anil joined Central Excise and Customs in 1983 as Inspector and served at various places including the Indo-Pak Border and CSI Airport, Mumbai. He served in the Directorate General of Central Excise Intelligence (DGCEI), Headquatrters, Delhi for 11 years where he received the Presidential Award for Meritorious Service in 2016. He retired as an Assistant Commissioner, IRS in 2019.

Presently, Anil is staying at Jaipur, enjoying his days with a little angel, his four year old grandson.

 "अंतिम पहर जीवन का अग्निपथ"

कल दोस्तों से सुना कि हमारे पुराने साथी रिटायर्ड एडिशनल कमिश्नर श्री एस आर गौड साहब गंभीर बीमारी से ग्रस्त बिस्तर पर हैं, बोलने से भी लाचार।

अनायास ही मुझे उनसे संबंधित कुछ स्मृतियां ताजा हो आईं। मानव मस्तिष्क एक स्मृति के सहारे आगे कडियां जोड़ता चला जाता है। खैर।

साल 1983 का यही मई का महीना रहा होगा, (नहीं तो जून का पहला हफ्ता) जब हम 12 ट्रेनी इंस्पेक्टर्स ( सेंट्रल एक्साइज & कस्टम्स) एक शाम अब मरहूम सुपरिटेंडेंट साहिब, श्री बी सी चौपड़ा साहब, जो तब हमारे प्रशासनिक मुखिया थे की सदारत में शाम की ट्रेन से कोटा रवाना हुए थे। दरअसल, तब के कस्टम्स कलेक्टर श्री कंवल साहब के निर्देश पर नए रिक्रूट्स् को पहली बार जयपुर समाहर्तालय (Collectorate) में ट्रेन्ड किया जा रहा था कोर्स डायरेक्टर  श्री दीपक शेट्टी, सहायक समाहर्ता (तकनीकी) की निगरानी में। कोटा रेल्वे स्टेशन पर हमारा इस्तकबाल तब इन्हीं गौड साहेब ने किया था। तब वहां श्री इन्द्रा साहब असिस्टेंट कलेक्टर थे और गौड साहब निरीक्षक मुख्यालय। एक मेटाडोर में सबको बिठाकर नयापुरा स्थित "चमन" होटल में ठहराया गया था। अगले दो दिनों तक हर विजिट पर वे हमारे साथ रहे और हमारा सबका ठीक से ख्याल रखा। वो मेरा उनसे पहला साबका था। लंबे, एकदम फिट, कोई तोंद जैसी चीज नहीं, चपल, चंचल, तेज (फास्ट), स्मार्ट और आत्मविश्वास से भरपूर।

फ़िर आया साल 1987 का अप्रैल महीना जब मैं अपनी पहली पोस्टिंग MOR कांकरोली से अंडर ट्रांसफर था जयपुर मुख्यालय के लिए। कांकरोली तब बहुत बड़े भौगोलिक क्षेत्रफल के बावजूद औद्योगिक यूनिट्स के लिहाज से एक बहुत छोटी रेंज हुआ करती थी। तो, उस अप्रैल में एक दिन अचानक मार्बल इंडस्ट्रियल एरिया में शोर उठा, "जयपुर से एक्साइज की फ्लाइंग आ गई"। पूरा दिन दफ़्तर में खबरें आती रहीं। ट्रेड दब, छिपकर भागती फिरी। तब हमारे रेंज अधिकारी जोधपुर वासी मरहूम एस पी त्रिवेदी साहब थे और उन्होंने पता लगा लिया कि श्री के डी दुबे साहब (अब मरहूम) की सदारत में हेडक्वार्टर्स ऐंटी इवेजन टीम आई है। उन्हें शायद कुछ बुरा लगा कि उनके क्षेत्राधिकार में बिना बताए कोई आकर इस बड़े लेवल की हलचल मचा दे। क्योंकि, कुछ ही साल पूर्व कंवल साब की रेजिम में वे स्वयं हेडक्वार्टर्स कस्टम्स प्रिव्हेंटिव की पावरफुल पोस्ट पर थे। चूंकि कांकरोली एक्साइज स्टाफ पर 1985 में नई लेवी के समय पत्थरबाजी हो चुकी थी (that episode some another time) और बाजार में दो दिनों की हलचल के बाद असंतोष और आक्रोश पनप रहा था, सो आसन्न खतरे को भांपते हुए पारखी त्रिवेदी साब ने मुझे अपनी फिएट कार RRM 49 में बिठा देर शाम शशि गेस्टहाउस में दस्तक दे दी। बंद कमरे में उनके और दुबे साब के बीच कुछ गुप्त मंत्रणा हुई। इस बीच मैं टीम के चार-चार वरिष्ठ निरीक्षकों के साथ अलग कमरे में कुछ दबा सा, सहमा सा बैठा रहा। मैं 1983 का भर्ती नया-नया रिक्रूट और वे सब सीनियर, हेडक्वार्टर्स एंटी इवेजन के नाते पूरे राजस्थान पर हुकुमत के भाव से लबरेज बॉडी लैंग्वेज के साथ कालर ऊपर किए और लाल बत्ती की महिंद्रा जीप पर सवार। खैर, तब मार्बल कमॉडिटी 25 में थी, मतलब, दरअसल 1985 में ही मार्बल पर ड्युटी आई थी और उसे टैरिफ के चैप्टर 25 में डाला गया था। और इस नई-नवेली 25 की दुल्हन पर सबकी वक्र दृष्टि रहना लाज़मी था। तब के मेवाड सरदार, सरदार मेवा सिंह जी की सेना के भी बांके सेनापति राकेश मैंन्डोला साब या गजराज सिंह शक्तावत साब की अगुवाई में फौजें वहां अक्सर ही सक्रिय रहती थीं। सो, जयपुर वाले भी क्यों चूकते। तो, इन्हीं गौड साब की अगुवाई में अन्य लड़ाके श्री सुमित दास साब, मरहूम राकेश मित्तल साब और मरहूम लालसिंह बिष्ट साहब के पहली बार दीदार हुए।

कई साल गुजरने पर आया 1995 और मैं अजमेर डिवीजनल ऐंटी इवेजन टीम का हिस्सा था। जयपुर मुख्यालय पर दबंग, होशियार और तेज तर्रार एडिशनल कलेक्टर श्री एम के गुप्ता साहब की हुकुमत थी और उनके सबसे प्रिय तेज तर्रार सिपहसालार यही एस आर गौड साहब वहां हेडक्वार्टर्स ऐंटी इवेजन के सुपरिटेंडेंट। सो, ये टीम जयपुर से चली और आदेशानुसार हमनें हमारी तब की असिस्टेंट कलेक्टर सिम्मी जैनी साहिबा के नेतृत्व में सेनापति श्री ताराचंद जी, सुपरिटेंडेंट के साथ उन्हें जॉइन किया। मौका था भीलवाड़ा (जो तब अजमेर डिवीजन में आता था) के किसी नए स्थापित प्रोसेस हाऊस पर रेड का। काम चल रहा था, फटाफट कागज-पत्तर इकट्ठे किये जा रहे थे। कि, तभी अचानक शोर-शराबा सा होने लगा और लगा कि बाहर कुछ लोग जमा हो रहे हैं। पता चला कि पूछताछ के दौरान इन्हीं गौड साहेब ने वहां के एक्साइज मैनेजर को आवेश में एक झन्नाटेदार हाथ जड दिया। बस, स्टाफ को तो बहाना मिल गया। इसे प्रेस्टीज इश्यू बनाकर असहयोग शुरू कर दिया गया। बाहर धीरे-धीरे मजदूरों की भीड़ इकट्ठा होने लगी। हल्ला होने लगा कि "बहुत दादागिरी हुई आज इन्हें देख लेना है, आदि"। लगा कि आज खैर नहीं है, कागज-पत्तर तो छिनेंगे ही, हाथ-पैरों की सलामती भी खतरे में और तब ऊपर वाला याद आने लगा। खैर, बड़ी-लंबी चौड़ी वार्ताओं के दौर और ट्रेड के अन्य सयानों के दखल के बाद तय पाया कि जो जितना इकट्ठा हुआ उसके अलावा अब और कुछ नहीं। रात अंधेरे में जान बचा निकल लिए।

उसके बाद, शायद 2010 या 2011 में एकबार डी जी सी आई दिल्ली से पटना में रेड के दौरान लोकल स्टाफ से पता चला कि गौड साब वहां ज्वाइंट कमिश्नर हैं। दूर परदेस में अपनी कमिश्नरी का आदमी हो तो लगता है जैसे अपने पीहर वाला हो। लेकिन देर रात फ्री होने और अगले दिन फ्लाइट पकड़ने के फेर में साहब से मुलाकात नहीं हो पाई।

अभी, 2019 के दशहरे पर ही उनके फ्लैट पर मिला था। बड़े खुश हुए, ठीक थे। अब अचानक ये सब जानकर लगता है कि शायद, हम सबके जीवन का ये अंतिम पहर ही अग्निपथ है, सबसे मुश्किल दौर। खुदा रहम करे, सबको सलामती बख्शे।

            आमीन!!

          

Comments

अनिल भाई बहुत सुन्दर और स्वादिष्ट वृतांत। मन मे उनसे मिलने की उत्कट ईच्छा पर मिल नही पा रहा हू। यदि धृष्टता खम्मा हो तो कहना चाहूंगा कि " अपना देश अपनी भाषा" पर बल देते तो मै व्यक्तिशः आपका आभारी रहूंगा।

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