सच कहूँ तो बित्ते भर की दूरी है

Author: 
Shubh Chintan
Shubh Chintan

Shubh Chintan belongs to 1993 batch of IRS (C&CE). He has worked in Hyderabad, Ahmedabad, Surat, Delhi and Gurgoan in various Customs, Central Excise and GST formations.

 

He has also worked in DG HRD for five years. While posted at Ahmedabad Customs, he contributed in making a film showing, Medieval Period, Customs procedures, for CBIC Goa museum.

 

Shubh Chintan has recently written four books of collection of Hindi Poems altogether totaling 275 poems.

 सच कहूँ तो बित्ते भर की दूरी है 

जाने मिट्टी में क्या कुछ छुपा है यहाँ

जाने कितनों को क्या मिल चुका है यहाँ

क़ाफ़िले जितने आए यहीं रह गए

लौटने का कोई सिलसिला ही नहीं

झाँक कर देखने भर की दूरी है ये

सच कहूँ तो बित्ते भर की दूरी है ये

फ़ासले इतने ज़्यादा जमाने में हैं

दरमियाँ अपने तो फ़ासला ही नहीं

उनका कहना था मुझ पर किताबें लिखीं

शक्ल चेहरे पे उनके हमारी दिखी

खोल कर जब पढ़ा तो फ़ना हो गया

उनमें तो ज़िक्र मेरा मिला ही नहीं

आप सच हैं बहुत आप झूठे नहीं

मेरी गुस्तखियों पर भी रूठे नहीं

मेरा होने का दावा ग़लत है तेरा

आपको मुझसे कोई गिला ही नहीं

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2.  मज़ा ख़ुदा तुझमें डूब जाने का है 

या तो वो एक मूरत में छुप के मिला 

मुझको वो माँ की सूरत में छुप के मिला 

रूबरू तो वो मुझ से मिला ही नहीं 

पुष्प , कलिका से आगे खिला ही नहीं 

उसका ना कोई मक़सद सताने का है 

उसको भय सामने खुल के आने का है 

मुझको मंदिर में पा कर वो बेचैन है

मुझको तो बस चढ़ावा चढ़ाने का है 

तुम तो आए थे मन को रिझाने यहाँ 

बैठ गए तुम बना के यहाँ पर मकाँ

एक लम्बे सफर का मुक़ाँ भर है ये 

थोड़ा रुकना है और लौट जाने का है 

आज़माइश का धंधा मुबारक तुम्हें 

मुझको तो बस मुझे आज़माने का है 

होश में रह कर उस को ना पाओगे तुम 

लिख कर रख लो  कल मुँह की खाओगे तुम 

काम कोई समझदारी का ये नहीं 

काम तो बस किसी ये दीवाने का है 

तट पे मछली तड़पने को मजबूर है 

उसको पानी में फिर से समा जाना है 

तैरने में मज़ा वो मिलेगा नहीं 

मज़ा ख़ुदा तुझमें डूब जाने का है 

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3. मूलधन भी चुक गया होगा 

सिर्फ़ आवाज़ हुई पर 

नज़र ना आया कोई 

कोई दरवाज़ा खटखटाकर 

छुप गया होगा 

आधे रास्ते तक निशाँ हैं 

नहीं आगे उसके 

पहले बढ़ाकर के कदम 

फिर वो रुक गया होगा 

कोई  बंदूक़ तो उसको 

यूँ झुका सकती नहीं 

बोझ कुछ ज़्यादा ही होगा 

वो झुक गया होगा 

यार तुम सिर्फ़ ख़ुदा हो 

या महाजन भी हो 

बात दो चार की हुई थी 

जन्म ले चुका हूँ सौ 

ब्याज तो ब्याज , मूलधन भी 

चुक गया होगा 

आज सूरज को निकलने 

में हुई है देरी 

वो किसी और आसमान में 

उग गया होगा 

छोड़ कोई फ़ायदा 

नहीं होगा लौट जाने में 

अब तक तो पंछी खेत 

पूरा चुग गया होगा 

 

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