ऐसे थे प्रो. पी. सी. माथुर साहेब

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खेमचन्द महावर

खेम चंद महावर ने राजस्थान के टोंक जिले में अपनी प्रारंभिक शिक्षा करी जिसके वह जयपुर के राजस्थान कॉलेज से स्नातक बने और राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर । आज वह श्री धर्मचंद गांधी जैन राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बहरोड़ में व्याख्याता हैं । वर्तमान में वह राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के राजनीति विज्ञान विभाग में पोस्ट डॉक्टोरल फेलो हैं ।

हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है ?

बड़ी मुष्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।

जी हाँ प्रो. पी. सी. माथुर साहेब ऐसी ही एक शख्सियत थी, जो अपने आप में अनूठी, अनन्य उदार ह्रदय, विषाल ह्रदय और बहुमुखी व अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। वे अध्ययन, अध्यापन, और शोध को पूर्णतया समर्पित व्यक्तित्व थे।

प्रो. पी. सी. माथुर साहेब मेरे आदरणीय और अनुकरणीय गुरू थे। वे पूर्णतया अकादमिक व्यक्ति थे। सोते, उठते, खाते, पीते, घूमते 24 धण्टे एकेडमिक बातों के अलावा उन्हें कुछ नहीं सूझता था। वे अपने विषय में तथा समसामयिक राजनीति में अद्यतन ज्ञान रखते थे।

परिचय

प्रो. पी. सी. माथुर का जन्म 10 जून 1940 को अलवर में हुआ था। इनके पिता स्व. श्री खेमचन्द माथुर व माता श्रीमती दयावन्ती (दयालबाग, आगरा) थी। इनके दादा श्री रामचन्द माथुर (अलवर) तथा दादी श्रीमती लक्ष्मी (बहरोड़) के संभ्रान्त घराने से थी। प्रो. पी. सी. माथुर अपने 8 भाई - बहिनों में सबसे बड़े थे। इनके पिता श्री खेमचन्द माथुर दिल्ली के सेन्ट स्टीफन कॉलेज से पढ़े थे। बाद में वे स्वतंत्र भारत में राजस्थान के अलवर जिले के प्रथम कलक्टर के रूप में प्रोन्नत हुए।

इनके परिवार के 8 भाई - बहिन भी उच्च, प्रषासनिक पदों पर रहे और उनसे जुड़ने वाले दूसरे 8 परिवार भी। सर, बताते थे कि हमारे घर में तो राजस्थान की सरकार बैठी है, परन्तु हमें कभी इसकी शक्ति के प्रयोग की आवष्यकता ही नहीं पड़ी, क्योंकि हम तो सारे काम जानकारी, ज्ञान के आधार पर कर लेते हैं। ये थी उनके ज्ञान की महिमा। इनका शैक्षणिक व अकादमिक कॅरियर निम्न प्रकार रहा। पिता का पद प्रषासनिक (सरकारी) होने के कारण, उनका स्थानान्तरण होता रहता था, इसलिए इनकी आरम्भिक षिक्षा एक स्थान पर नहीं हो सकी, पिता के स्थानान्तरण के साथ ही इनका भी स्थानान्तरण होता रहता था। क्रमषः अलवर, भरतपुर, उदयपुर, झालावाड़, बीकानेर, अजमेर और जयपुर में सम्भवतः इनकी षिक्षा दीक्षा हुई। 1961 में राजस्थान विष्वविद्यालय जयपुर से स्नातकोत्तर (एम. ए.) की डिग्री, अर्थशास्त्र व लोकप्रषासन में 67 प्रतिषत के साथ प्रथम स्थान व स्वर्ण पदक प्राप्त किया। पहले एम.एम. अंग्रेजी माध्यम से ही हुआ करता था। 1961-62 में आप राजनीति विज्ञान विभाग के विषिष्ट सहायता कार्यक्रम (SAP) में Reader के पद पर नियुक्त हुए।

1971 में ये शोध कार्य हेतु विकास अध्ययन संस्थान ब्राइटन, इंग्लेण्ड (Institute of Development Studies, Brighton, UK) गये। 1975 से 1978 तक आप (Indian Institute of Advanced Study) शिमला (हिमाचल प्रदेष) में विजिटिंग फैलो के तौर पर रहे। 1978 में पंचायती राज से सम्बद्ध ष्अषोक मेहताष् समिति द्वारा विषेष निमन्त्रण पर दिल्ली गये और प्रतिवेदन के निर्माण में अहं भूमिका अदा की। जनवरी से जून 1994 में आप South Asia Visiting Scholars Programme के तहत ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ऑक्सफोर्ड, क्वीन एलिजाबेथ हाउस, इंग्लेण्ड गये। राजस्थान विष्वविद्यालय जयपुर में आपने South Asia Studies Center, S.A.P., Political Science Department में रहते हुए अनेक गोष्टियाँ, संगोष्ठियों अधिवेषन, शोध, आदि कार्य करवाये।

सन् 2000 में सेवा निवृत्ति के बाद भी इनकी अकादमिक गतिविधियाँ विभिन्न माध्यमों (N.G.O. आदि) से जारी रही।

बहुआयामी व्यक्तित्व

प्रो. पी. सी. माथुर बहुआयामी व विविध विषयों के ज्ञाता थे।उन्हें किसी भी विषय पर सरलता से सुना जा सकता था। चाहे कला हो, विज्ञान हो, गणित हो,या अर्थषास्त्र हो या वाणिज्य सभी विषयों पर वे आधारभूत ज्ञान रखते थे। अधिकारिक रूप से वे अर्थषास्त्र लोकप्रषासन और राजनीति विज्ञान के प्रकाण्ड पंडित थे, परन्तु शेष सभी विषयों में उनकी जानकारी भी जबरदस्त थी।

1995 - 96 के एम. ए. (Political Science) के बेच को आप लोकप्रषासन पढाया करते थे, मैं तभी से उनका विद्यार्थी रहा हूँ। उनके शोधपरक ज्ञान को जानने के लिए विद्यार्थी कक्षा में तथा घर पर सदैव आया करते थे। बापू नगर, गणेष मार्ग पर, स्थित उनका वो बडा बंगला, जिसके दो मुख्य द्वार के अलावा घर के अन्दर तीन द्वार थे और किसी भी द्वार ंसे कोई भी छात्र आ जा सकता था तथा किसी भी विषय पर बातचीत कर सकता था। हम कई साथी (सलमान खान, सुरेन्द्र सिंह, रवि वर्मा, दषरथ सिंह, पदम चंद मौर्य, मैं स्वयं) तथा अनेक विद्यार्थी आया जाया करते थे।

मुझे उनका 20 वर्षों का सानिध्य प्राप्त हुआ इस दौरान मैं उनके साथ अनेक शैक्षणिक भ्रमण किये।

2006 में, मैं पी. सी. माथुर साहेब के साथ बीकानेर गया था। यह उनके साथ मेरी जयपुर से बाहर पहली यात्रा थी। वहाँ किसी सेमिनार की पूर्व तैयारी हेतु हम गये थे। इस सेमीनार के लिए हमें जयपुर से प्रातः 6 बजे निकलना था, माथुर सर, स्वयं गाड़ी लेकर मेरे घर आये और हम उस टैक्सी से बीकानेर रवाना हुए। माथुर सर में मानवीयता समता का भाव व स्वतंत्रता की भावना कूट - कूट कर भरी हुई थी।

वे चाहते तो मुझे अपने घर भी बुला सकते थे, किन्तु वे स्वयं मुझे लेने मेरे घर तक आये ऐसी समानता का भाव आजकल दुर्लभ है।

जब हम बीकानेर गये तो वहाँ सेमीनार स्थल के लिए अनके अच्छे होटल, तलाषे, अच्छे सेमीनार हॉल देखे और चयन किया बीकानेर की एक छोटी सी घटना है, वह सर के लिए सामान्य हो सकती है, किन्तु मेरे लिए यह बड़ी बात थी, नई बात थी।

बीकानेर में बीकानेर विष्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति श्री होषियार सिंह जी ने माथुर साहेब को रात्रि भोज हेतु निमंत्रण दिया, फोन पर यह वार्ता चल रही थी, तब फोन पर उन्हें कहा था कि हम दो व्यक्ति है, मेरे साथ खेमचन्द भी है वह भी मेरे साथ आएगा, मैं भी उनके साथ गया और उन्ही के साथ एक मेज पर रात्रि भोज किया। बीकानेर में मैं और सर सरकारी सर्किट हाउस में ठहरे थे। सर मुझे अपने साथ रखते थे, ऐसा नहीं कि वे किसी अन्यत्र रहे और मैं कहीं और।

सर के साथ मेरी दूसरी यात्रा 21 -22 जनवरी 2016 में की। जब अजमेर में यह सेमीनार रखा गया। यह सेमीनार राजनीति विज्ञान और लोकप्रषासन विभाग, एम.डी.एस. विष्वविद्यालय, अजमेर और शांति कल्याण समिति के संयुक्त तत्वावधान में भारत में पंचायत राज संस्थाओं की निर्वाचन व्यवस्था विषय पर आयोजित किया गया था। यह सेमिनार बहुत सफल रहा था। मैंने इसमे शोध पत्र भी पढ़ा और सेमीनार के कुछ प्रबंधात्मक दायित्वों का निर्वहन भी किया।

सर गम्भीर से गम्भीर माहौल में भी अनेक अवसरों पर व्यंग्यात्मक तरीके से गम्भीर बात को भी सहज तरीके से कह जाते थे, जिससे सदन में बैठे श्रोता गण अपनी हंसी नहीं रोक पाते थे। ऐसा ही वाकिया इस सेमीनार में भी हुआ। इस सेमीनार के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए प्रो. पी. सी. माथुर साहेब ने निर्वाचन में आने वाली समस्याओं पर चर्चा करते हुए कहा कि एक बार जब वे चुनाव पर्यवेक्षक के तौर पर फील्ड वर्क या सर्वे कर रहे थे, तो एक अपंग व्यक्ति (लंगड़े व्यक्ति) जिसकी चुनाव में ड्यूटी लगी हुई थी, ने सर से कहा कि देखिए सर मैं अपाहिज हूँ फिर भी मेरी चुनाव में ड्यूटी लगा दी है, कृपया करके मेरी ड्यूटी कटवा दीजिए, इस पर प्रो. पी. सी. माथुर साहेब बोले, अरे तुम तो केवल अपंग हो, कम से कम देख सकते हो, सुन सकते हो, और अपनी बात लोगों को समझा सकते हो, लेकिन मुझे तो जन्म से बोलने में परेषानी है, मेरी बात तो कोई समझ ही नहीं सकता फिर भी मेरी ड्यूटी चुनाव में लगा दी, मैं तो स्पष्ट न बोलने, न समझाने के कारण तुम से ज्यादा अपंगता की श्रेणी में आता हूँ। पर मेरी तो किसी ने सुनी ही नहीं। सर की यह रोचक बात लोगों को बहुत दिनों तक हंसाती, गुदगुदाती रही।

सर के साथ मेरी तीसरी यात्रा उदयपुर की थी। उदयपुर में राजस्थान विष्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रणेता व प्रथम अध्यक्ष रहे, प्रो. एस. पी. वर्मा साहेब की सद्षाला शब्दांजलि में 29 मई 2011 का आयोजन व प्रयोजन प्रो. पी. सी. माथुर साहेब द्वारा किया गया था। इस सद्षाला में कोटा खुला विष्वविद्यालय के 2 बार कुलपति रहे, प्रो. नरेष दाधीच, प्रो. अरूण चतुर्वेदी, प्रो. संजय लोढा, मूलप्रष्न के सम्पादक प्रो. वेददान सुधीर और जे. सी. गोविन्दम व अन्य गणमान्य व्यक्ति विद्यमान थे। प्रो. पी. सी. माथुर साहेबअपने परिवार श्रीमती शषि माथुर व पुत्री स्फूर्ति माथुर के साथ थे। मैं प्रो. के. एस.सक्सेना और अपने मित्र सम्पत राम जी के साथ एक अलग कार से ही गये थे।

सर के साथ ये मेरी चौथी लम्बी यात्रा थी। जो अन्तिम सिद्ध हुई। 11, 12 जुलाई 2015 में कुरूक्षेत्र विष्वविद्यालय में New Public Administration Society of India (NEPASI) की कांफ्रेंस थी। NEPASI के चुनाव भी होने थे। इस कांफ्रेंस के शुभारम्भ में जब पी. सी. माथुर साहेब सभा में आये तो सभागार तालियों के गूंज रहा था। उन्होंने व उनकी धर्म पत्नी शषी माथुर ने पूरे सभा के एक - एक प्रतिभागी से हाथ मिलाया। सभी मेहमान व प्रतिभागियों में प्रो. पी. सी. माथुर साहेब बहुत ही संजीदगी से मिल रहे थे। सभी उपस्थित लोग उनका अभिवादन कर रहे थे और पी. सी. माथुर साहेब भी तहेदिल से सबसे मिल रहे थे। किसे पता था कि जो शख्स उस सभा में सभी से एक हीरो की भाँति मिल रहा था, वह मुलाकात उन सभागार के लोगों के लिए अन्तिम होगी। 11 जुलाई 2015 की वह सुबह मेरे लिए भी अविस्मरणीय थी, जब पहली बार मैंने प्रो. पी. सी. माथुर साहेब का ऐसा स्वागत देखा। ध्यातव्य है कि इसके बाद दिनांक 18,20 सिम्बर 2015 परिष्कार कॉलेज जयपुर का सेमीनार उनका अन्तिम सेमीनार था। 21 सितम्बर को वे हमसे हमेषा के लिए विदा हो गये।

कुरूक्षेत्र के इस अधिवेषन का पहला दिन विचार - विमर्ष के साथ समाप्त हुआ। दूसरे दिन चुनाव होने थे, सो प्रो. पी. सी. माथुर साहेब ने बडी ही संजीदगी व ईमानदारी से चुनाव सर्वसम्मति से सम्पन्न करवाये अर्थात् मतदान की स्थिति उत्पन्न नहीं होने दी।

अन्तिम सेमीनार

11 - 12 जुलाई 2015 का कुरू़क्षेत्र विष्वविद्यालय कुरूक्षेत्र में NEPASI के राष्ट्रीय अधिवेषन के सफल चुनावों के उपरान्त वे उर्जा से भरे हुए थे। इस अधिवेषन में वे पुनः General Seceretary के पद पर सर्वसम्मति से चुने गये थे।

प्रो. पी. सी. माथुर साहेब का अन्तिम सेमीनार 11 - 12 जुलाई 2015 के कुरू़क्षेत्र विष्वविद्यालय में।
प्रो. पी. सी. माथुर साहेब का अन्तिम सेमीनार 11 - 12 जुलाई 2015 के कुरू़क्षेत्र विष्वविद्यालय में।

18 से 20 सितम्बर 2015 को सर की षिष्या डॉ. नीता शर्मा के समन्वयकत्व में परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेन्स जयपुर द्वारा (पंचायती राज व्यवस्था) पर एक सेमीनार का आयोजन किया गया था। यह 3 दिवसीय सेमीनार था। सर का स्वास्थ्य ठीक नहीं था, उन्हें स्वयं को इंसुलिन के इंजेक्षन लेने होते थे तथा खान - पान का विषेष घ्यान रखना होता था। इस दौरान उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शषि माथुर साये की तरह उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखती थी। सर इस सेमीनार में तीनों दिन आये और सुबह से सांयकाल तक रहते थे। सेमीनार के अन्तिम दिन जब मंच पर प्रो. शीला रॉय, प्रो. रविन्द्र शर्मा, प्रो. राघव प्रकाष आदि सभी मौजूद थे। उस मंच से उन्होंने युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा था कि हो सकता है कि मैं कल जिन्दा ना रहूँ, पर आने वाले कल में आपको मेरे जैसे अन्य लोग मिलेंगे। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, पंचायती राज का रोड़मैप आगे बदलेगा। सर, ने मंचासीन प्रो. शीला रॉय से यह शर्त लगाते हुए कहा कि हम पंचायती राज में गांधी और हिन्दस्वराज की खूब चर्चा करते हैं, पर क्या आप बात सकती हैं कि हिन्द स्वराज में पंचायत या पंचायती राज शब्द कितनी बार आया। सर ने इस दौरान अपनी धर्मपत्नी का नाम लेकर उनकी सराहना भी की। सर के अनूठे विष्लेषण और उन्मुक्त वक्तव्य शैली से लोग न केवल तरोताजा महसूस करते हैं, वरन् अनके ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त कर स्वयं को धन्य भी समझते हैं। जब पी. सी. माथुर साहेब बोलने लगते हैं तो इतना ष्नयाष् व ष्ओरिजनलष् बोलते हैं कि लोग उन्हें बस सुनते रहना चाहते हैं।

सर का यक अन्तिम सेमीनार था। यह सेमीनार 20 सित. 2015 को समाप्त हुआ और प्रो. पी. सी. साहेब 21 सिंत. 2015 को अपनी अमिट अमिट अमिट ......... छाप छोड़कर चले गये।

मैं यहाँ सर की तीन खूबियों की बात करना चाहूँगा - समता या समानता, स्वतंत्रता, मानवता।

1. समानता में सर उन तथाकथित बुराईयों (जातिवाद, धर्मवाद, अहंवाद) आदि से कोसों दूर थे। वे किसी भी व्यक्ति से मिलते थे तो सबसे पहले मिलने वाले (छोटे - बडे़) व्यक्ति को उनके समान व्यक्ति होने का अहसास दिलाते थे। उनकी नजर में एक प्रोफेसर और चपरासी सर्वप्रथम समान रूप से व्यक्ति है, और पद बाद की बात है। उच्च व निम्न पद का उन पर कोई असर नहीं होता था। यही कारण था कि वे एक चपरासी से लेकर एक टैक्सी ड्राइवर से घण्टों बात कर लिया करते थे। मैंने अपने छात्र जीवन में सर के साथ बहुत समय गुजारा है, उनकी बातें गहरी ज्ञान की पूर्णतया तार्किक और वैज्ञानिक हुआ करती थी, मैं अपने आपको उनकी बातों के सामने असहज महसूस करता था, किन्तु वेइस बात का निरन्तर संकेत देते रहते थे कि उनके जैसा ज्ञान प्राप्त करना सरल है, बषर्ते सही दिषा में सोचा जाये। वे अपने ज्ञान से दूसरों का मार्गदर्षन करते थे, लाभांवित करते थे। उन पर प्रभुत्व जमाने के लिए या अपने ज्ञान का प्रदर्षन के लिए वे ऐसा नहीं करते थे।

2. स्वतंत्रता - यह उनकी बहुत बड़ी खूबी थी। विचार विचारधारा, किसी भी प्रकार की व्यक्ति पूजा या शक्तिपूजा या चमत्कार, आदर्ष, आस्था, श्रद्धा आदि से पूर्णतया स्वतंत्र थे। वे वैज्ञानिक सोच और विज्ञान, तर्क, अनुभव पर विष्वास रखते थे।

जब भी कोई उनके किसी राजनीतिक या सामाजिक मुद्दे पर शास्त्रार्थ करता तो वे तटस्थ भाव से सभी विचारों की समालोचना किया करते थे, वे सभी की अच्छे कार्याें के लिए प्रषंसा किया करते थे। यही कारण था कि उनके पास सभी धर्मों, दल, विचार वाले व्यक्ति आया - जाया करते थे।

वे किसी भी व्यक्ति और विचार, चाहे वह उच्च हो या निम्न, मुक्त कंठ से प्रषंसा या आलोचना किया करते थे।

कोई विचार (कलर) उन्हें अपने मार्ग से डिगा नहीं सकता था। उनकी वक्तव्य शैली स्वतंत्रता व स्वच्छन्दता मिश्रण लिए हुए थी।

3. मानवता - प्रो. पी. सी. साहेब पढे़- लिखे उच्च कोटि के वित्प्रन, मानवीय गुणों से ओत - प्रोत व्यक्ति थे। एक समय की बात है- मैं (खेमचन्द महावर) और सर घर के गेट पर खड़े हुए बातें कर रहे थे, अचानक हमारे सामने एक मोटर - साइकल और टैक्सी में टक्क्र हो गयी। इस एक्सीडेंट में एक युवा सड़क पर गिर गया और तड़पने लगा। सर ने मुझे कहा- चलो इसे अस्पताल ले चलते हैं, सर ने एक टैक्सी की और मैं और सर ने उसे एस.एम.एस. इमरजेंसी में भर्ती करवाया। उस घायल युवा के साथ उसका साथी भी था, जो हमारे पीछे - पीछे मोटर- साइकिल से अस्पताल आया था। हमने उस युवा को अस्पताल में भर्ती करवाकर, घायल के साथी युवा को सर ने स्वयं का और मेरा पता व फोन नं. दिया कि यदि आवष्यकता हो तो हमें कॉल कर ले। इस घटना में दूसरी रोचक बात उस टैक्सी वाले के साथ हुई जिसकी टैक्सी में हम घायल को अस्पताल लाये थे। सर ने उस टैक्सी वाले को शाबाषी देते हुए 200 रू. दिये और मुझसे भी कहा कि तुम भी टैक्सी वाले को 200 रू. दो, क्योंकि उसने अच्छा काम किया है, मैंने भी गुरू का अनुसरण किया।

इसके अलावा स्वयं पी. सी. साहेब ने एक घटना की चर्चा करते हुए बताया था कि एक बार की बात है, जब वे शिमला (President House) में उच्च अध्ययन (रिसर्च) के लिए गये थे, वहाँ उस अध्ययन संस्थान में किसी प्रोफेसर साहेब (मुस्लिम प्रोफेसर) की असामयिक मृत्यु हो गयी। उन प्रोफेसर साहेब का घर कष्मीर के दूर दराज के क्षेत्र में था। वहाँ से साहेब के शव को उनके निवास तक पहुँचाने को कोई तैयार नहीं हुआ। तब पी. सी. साहेब ने स्वयं अकेले एक ड्राइवर के साथ अपना यह कर्तव्य निभाकर मानवता का परिचय दिया।

एक जबरदस्त एकेडमिषियन

प्रो. पी. सी. माथुर साहेब कमाल के अकादमिक पुरूष (व्यक्तित्व) के धनी थे।

उनसे किसी विषय पर लिखवाया जा सकता था। चाहे वह विषय तिल हो या तेल, चावल हो या पानी (मैंने उनकी पानी, नमक पुस्तक, विधानसभा के पुस्तकालय में देखी है) अथवा कोई सामाजिक या राजनीतिक व आर्थिक विचार।

ना जाने कितने व्यक्तियों के लेख, पुस्तकें, शोध पत्र उन्होंने लिखे भी, छापे भी छपवाये भी उनकी शोध पत्रिका इंडियन बुक क्रोनिकल इंडियन जनरल ऑफ इकोनोमिक, पॉलिटिकल एंड एडमिनिस्ट्रेषन नामक जनरल में उनकी मेहनत व पैसा दोनों लगे हुए थे। इसी प्रकार NEPASI भी थी।

उदयपुर से वेददान सुधीर जी द्वारा प्रकाषित श्मूल प्रष्नश्को बनाये रखने में उनकी महती भूमिका थी। इसके अतिरिक्त 5 पुस्तकंे जो कि अंग्रेजी माध्यम में व एक पुस्तक हिन्दी माध्यम में लिखी हुई है, मेरे पास उपलब्ध है।

इनकी कुछ पुस्तकें निम्न प्रकार हैः-

1. इकबाल नारायण व पी. सी. माथुर - Politics in Changing India - रावत प्रकाषन - 1994

2. पी. सी. माथुर - Political Contours of India’s Modernity - Aalekh Publisher, Jaipur - 1994

3. पी. सी. माथुर - Social and Economic Dynamics of Rajasthan Politics - Aalekh Publisher, Jaipur - 1996

4. पी. सी. माथुर - Rurality and Modernity in Democratic India Past & Present - Aalekh Publisher, Jaipur– 2007

5. प्रो. पी. सी. माथुर व प्रो. रविन्द्र शर्मा (सम्पादक) - भारत में पंचायती राज निर्वाचन - पंचषील प्रकाषन - 2013

इसके अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी उन्होंने लिखी है।

उनका सपना था कि वे ए.एल. बाषम की पुस्तक श्अद्भुत भारतश् की तरह ही श्अद्भुत राजस्थानश् नाम पुस्तक लिखें इस हेतु उन्होंने प्रो. लीलाराम गुर्जर साहेब मैं स्वयं गोविन्दन जी के साथ योजना भी बनवायी। इस दिषा में कार्य भी हुआ है। सन् 2005-06 में उन्होंने कानपुर से प्रकाषित प्रो. ए. के. वर्मा जी द्वारा सम्पादित मेगजीन श्शोधार्थीश्का वितरण मेरे द्वारा करवाया गया। अर्थात् इस मेगजीन की लागत वे स्वयं दिया करते थे और पूरे राजस्थान में डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से उसका वितरण का कार्य मेरे द्वारा होता था। पूरे राजस्थान में आज भी इस मेगजीन (शोधार्थी) की आज भी बड़े स्तर पर मांग है। अब इसका वितरण बंद हो गया है और यह मेगजीन ऑनलाइन उपलब्ध है।

यह मेरा सौभाग्य है कि मेरी पहली पुस्तक सिविल जनलोकपाल और सिविल सोसायटी 2014 की प्रस्तावना भी उन्होंने ही लिखी थी। मेरे शोध का विषय, जिस पर मुझे ICSSR दिल्ली से PDF मिला उस विषय का चयन भी प्रो. पी. सी. साहेब ने ही करवाया था। मेरे इस शोध का विषय - राज्य राजनीति में मुख्यमंत्री की अवधारणा: स्व. श्री बरकतुल्ला खान के विषेष सन्दर्भ में अध्ययन था।

सन् 2016 में उन्होंने मुझे लोक प्रषासन पर कार्य करने को कहा। इस हेतु उन्होंने मुझे 3-4 पेज स्वयं लिखवाये भी, उनकी योजना थी कि लोक प्रषासन पर हिन्दी में कोई अच्छी पुस्तक आये।

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