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होली आदि बनस्थली की
सुमंत पंड्या वर्ष 1970 में राजनीतशास्त्र विभाग , राजस्थान विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद , लगभग चार दशक बनस्थली विद्यापीठ में राजनीतिशास्त्र विषय के अध्यापन के बाद अपने आवास गुलमोहर मे जीवन संगिनी मंजु पंड्या के साथ जयपुर में रहते हैं. सभी नए पुराने दोस्तों और अपनी असंख्य छात्राओं से भी संपर्क बनाए हुए हैं. फेसबुक और ब्लॉग की दुनियां इसमें मददगार होगी यह आशा रखते हैं .
होली आ रही है तो बातें आदि बनस्थली की होली की :
ये तब की बातें हैं जिन्हें जानने समझने वाले अब कम लोग बचे हैं पर अभी हाल हैं . कल को तो ये बातें केवल जन श्रुतियों में रह जाएंगी कि उस छोटे से जन समुदाय में कैसी पारस्परिक आत्मीयता थी , कैसी पारिवारिकता थी , कैसी समता थी , कैसा कार्यकर्त्ता भाव था . बनस्थली की शुरुआत पंडित हीरा लाल शास्त्री की समाज सुधार की ललक के चलते हुई थी अतः शिक्षण संस्था बन जाने के बाद भी बजाय कर्मचारी के कार्यकर्त्ता शब्द प्रचलित था , ऐसे ही समय की एक होली के दिन की महा मूर्ख सम्मेलन की बात है , तो सुनिए :
सभा में से आवाज आती है अगले प्रस्तोता के लिए फर्माइश :
“गौड़ साब , गौड़ साब ! “
अब सभा में दो गौड़ बैठे हैं - एक कार्यालय के मदन मोहन गौड़ और दूसरे अर्थशास्त्र विभाग के श्याम नाथ गौड़ ( बाद में तो श्याम नाथ गौड़ केवल श्यामनाथ के नाम से जाने जाते थे । ) खैर ..
भाई साब मदन मोहन गौड़ पूछते हैं :
“ कौन सा गौड़ चाहिए ? हल्का कि भारी ? “
सभा में से आवाज आती है ,” भारी .”
और वो उठकर सामने चले जाते हैं . असल में हल्के गौड़ से वे वय में बड़े थे और उनका गायन और लेखन अद्वितीय था . वो गए और उन्होंने जो गीत गाया उसके बोल थे :
“ होगा तू भगवान् किसी का , मेरा तू भगवान् नहीं है .”
मदन मोहन गौड़ असमय और न जाने की आयु में चले गए , इधर श्यामनाथ का आखिरी ग्रीटिंग कार्ड मॉरीशस से आया था आगे उनकी कोई खबर नहीं मिल पाई .
पर वे दिन और वो लोग मुझे बीते दिनों की याद दिलाते हैं . मेरे दिल में इच्छा उत्पन्न होती है कि वे फिर लौट आएं .
आज के लिए इतिहास के संग्रहागार से बनस्थली का और भी पुराने समय का एक चित्र जोड़ता हूं जब सरदार पटेल बनस्थली आए थे . चित्र मुझे जे. एन. यू. के एक गंभीर अध्येता गणपत ने ये सोचकर भेजा है कि ये मेरे काम का होगा .
Sardar Patel visits Banasthali Vidyapeeth
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