"वो भी एक जमाना था"

Author: 
Samiran Sarkar

I was  mediocre Science - bio student from '76 Batch at St. Xaviers ; completed B.Sc. Geology from Maharaja’s College Jaipur. Did M.Sc in Geology from the University of Rajasthan.

Joined The Bank of Rajasthan Ltd 1984 which was taken over by ICICI Bank in 1984. I took VRS in 2012 and took to writing poems as a challenge from my friend and schoolmate and have continued since then. Presently Samiran lives in Jaipur.

                             

मोहब्बत तो बस रह गई है कहानी और किस्सों में

बात बात में अब आड़े आती हैं धन दौलत की बातें

खेल कूद में भी अब कर लिया है पैसों ने घुसपैठ

खुद के पास के खिलौने को औरों से बेहतर बताते

बड़ो के हेठी की भावना अब बच्चे भी हैं रहे अपना

सामाजिकता को भूलकर अब निजता के गुण गाते

तो भईया

एक वो जमाना था जब हम सब मिल कर बैठा करते

एक ये जमाना है जब हम सब बस अकेले ही बिताते

एक वो जमाना था जब सबको बच्चों का ध्यान था रहता

एक ये जमाना है जब खुद बच्चों का पता नहीं रख पाते

एक वो जमाना था जिसकी यादें में आज भी हैं खो जाते

एक ये जमाना है जो बस हम मोबाइल सहारे हैं गुजारते

धमाल चौकड़ी का वो ज़माना तो अब इतिहास हो गया

एक ये जमाना है हम घरवाले भी बात करने से कतराते

‌ "सरकार"

 

 

 

                                           Children at play without a care in the world 

भक्त और भगवान

एक बंदे के जहन बार बार ये सवाल आता क्यों है

जिधर देखो उधर ईसां परेशां नजर आता क्यों है

ऐ परवरदिगार तेरी कायनात में ये कैसा आलम है

तेरी खुदाई में हर तरफ जुल्म नजर आता क्यों है

कहने को तो हर ज़र्रा तेरी खुदाई का ही नतीजा है

तो फिर हर किसी चीज़ में ऐब नज़र आता क्यों है

सुना है तेरा दीन तेरा ईमान अमन का तलबगार है

तो फिर हर तरफ बस तकरार नजर आता क्यों है

तूने खिदमत के लिए फरिश्तों की फौज थी बनाई

फरिश्तों के बीच शैतान का वजूद नजर आता क्यों है

लोगों ने तो तेरी तारीफ में किताबें लिख दीं हैं

हर तरफ मुझे मौका ऐ शिकायत नजर आता क्यों है

देख समझ कर मैं ये सोचने पर मजबूर हुआ हूं

तेरा वजूद हकीकत नहीं एक वहम नजर आता है

ईश्वर उवाच

गर मैं बस वहम हूं इक हकीकत नहीं

कदम दर कदम मुझे कोसा करता क्यों है

गर मैं बस वहम हूं इक हकीकत नहीं

हर उलझन पे मुझे याद करता क्यों है

गर मैं बस वहम हूं इक हकीकत नहीं

हर नाकामी पर शिकायत करता क्यों है

गर मैं बस वहम हूं इक हकीकत नहीं

जरूरत पर सहारा चाहा करता क्यों है

गर मैं बस वहम हूं इक हकीकत नहीं

मुझसे लड़ने का इरादा रखा करता क्यों है

गर मैं बस वहम हूं इक हकीकत नहीं तो फिर

जंगजू है जमीर तो मरने की चाह रखता क्यों है

"सरकार"

 

 

                                                             The Seeker 

 

 

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