बजट एक उत्सव

Author: 
Anil Chandela

Anil Chandela was born in Ajmer in 1959. He graduated with a B.Sc. in Biology from Government College, Ajmer (GCA) in 1980.

Anil joined Central Excise and Customs in 1983 as Inspector and served at various places including the Indo-Pak Border and CSI Airport, Mumbai. He served in the Directorate General of Central Excise Intelligence (DGCEI), Headquatrters, Delhi for 11 years where he received the Presidential Award for Meritorious Service in 2016. He retired as an Assistant Commissioner, IRS in 2019.

Presently, Anil is staying at Jaipur, enjoying his days with a little angel, his four year old grandson.

अभी हाल ही में 28 फरवरी गई है। अब तो बजट डिजीटल हो चुका है। जब हम लोगों ने सर्विस ज्वाइन की थी तब बजट 28 फ़रवरी को आया करता था। 1983-87 का दौर, कांकरोली नई-नई रेंज। रेडियो का इंतजाम किया जाता था। शाम को स्टोव पर बड़ा भगौना चढ़ता था। कांकरोली, माने द्वारकाधीश का स्थान, विशाल राजसमंद झील के किनारे।

पालीवाल समाज की मैजोरिटी वहां किसी शराब या मटन की दुकान की इजाजत नहीं देती थी। जुड़वां कस्बा राजनगर यह कमी पूरी करता था जहाँ एक शराब की दुकान के साथ काफी सिलावट व कुछ खटीक परिवार थे जहाँ मटन-चिकन मिल जाता था चोरी छिपे। अब जैसा नहीं था कि तीन रेंज पर एक इंस्पेक्टर, हम चार-पांच थे और पांच ही सिपाही-हवलदार। हमीर सिंह गुंजोल (बनास नदी के किनारे बसे गांव गुंजोल के ठिकानेदार), एक और हमीर सिंह उदयपुर से आगे कहीं से, लक्ष्मण सिंह, एक और ठाकुर नाहर सिंह सब बड़ी-बड़ी मूंछों वाले मेवाड़ी ठाकुर साहिबान और करीब 70 वर्षीय उदयलाल जोशी। सब के सब गुजरे जमाने के टौबेको वारियर्स। तो ये ठाकुर साहिबान उस रोज भगौना चढा देते थे। और क्यों नहीं, बाद को पता चला कि खुद नॉर्थ ब्लॉक में TRU बजट तैयार करने से पहले हलुआ सेरेमनी करवाता था एफ एम द्वारा जो आज भी बदस्तूर जारी है।

लेकिन शाम अभी बाकि है, थोड़ा सुबह का जायजा। उस दिन सुबह (या एक शाम पहले) अधीक्षक महोदय डिवीजन ऑफिस से आया एक सीलबंद लिफाफा खोलते थे और सब इंस्पेक्टर साहिबान उत्सुकता से तकते थे किसके नाम कौनसी फैक्ट्री निकलेगी। जी हां, बहुत ही महत्वपूर्ण बजट-डे स्टॉक टेकिंग।

 ये लिस्ट संभाग कार्यालय में कुछ चुनिंदा वरिष्ठों द्वारा तैयार की जाती थी जो किसी मठाधीश से कम नहीं होते थे। सबको उनकी स्तिथि अनुसार चुन-चुन कर दी जाती थीं। जैसे, हलवाई के बड़े से कड़ाहे में दूध जिसमें मलाई भी तो दूध भी और आखिर में तलछट या खुरचन भी, सबको यथायोग्य। इस कार्य में संपर्क बहुत काम आते थे, हमेशा की तरह जैसा हर काल-समय में होता है। हम जैसे नए लोग खुरचन से भी बहुत प्रसन्न रहते थे, सब जानते हैं खुरचन कितनी स्वादिष्ट होती है, आज भी।

 इसी बात पर याद आते हैं एक वरिष्ठ, अब दिवंगत, जो प्रिवेंटिव में अपने कुशल मैनेजमेंट के तहत कहा करते थे कि "देखो भाई, चील या बाज तो मांस ही खाएंगे और कबूतर दाना"। सच ही तो कहते थे। वैसे एक प्रजाति और होती थी, मोर की जो सुंदर पंख फैलाकर रिझा दे सबको और दाने के साथ-साथ वक्त जरूरत सांप भी मारकर खा ले। ऐसा हर कालखंड में होता आया है, होता रहेगा, कुछ नया नहीं। हां तो, अपनी-अपनी टास्क लेकर निकल पड़ते थे। एक दिशा में होने पर दो या तीन लोग कार-टैक्सी पूल कर लेते थे। सामने वाला भी होशियार और अलर्ट, पहले से निर्धारित फॉर्मेट में स्टेटमेंट तैयार। जाओ, थौडी खातिर, और करो दस्तखत। लौटते में बहुप्रतीक्षित "लिफाफा", जिसके हेतु सब जतन होता था, मिलता जिसे जेब में रखते हुए जो सुकून मिलता था, अवर्णनीय।

            शाम घिर आती तब तक स्टॉक टेकिंग वारियर्स भी लौट आते। फिक्स्ड टाइम कॉल बुक होती थी, लाइट्निग बजट कॉल, पहले से ही SDM टेलीफोन्स को चिट्ठी द्वारा ताकीद कर दिया जाता था। जे के टायर्स से दो गाड़ी तैयार रहती थीं। थाने जा कर वायरलैस पर आए बजट को लाना होता था। इस बीच महफ़िल का आगाज हो जाता था।

अमूमन हमारे वरिष्ठतम, गुरू बाबू मोशाय के निर्देश पर बीयर लाई जाती थी, मोहन मीकिन्स की "गोल्डन ईगल"। और उनके बताए अनुसार उसमें "पंच" दिया जाता था "ब्लू रिबन" जिन का। फिर, जो सुरूर आता था कि बजट-वजट गायब। सिर्फ मस्ती और भगौने का मटन, साथ में उन ठाकुर साहिबान के तंबाकू के जमाने के किस्से।

        अब सब गुजरे जमाने की बातें। सिर्फ यादें।

Comments

Fully agreed. Really at that period Budget day was enjoyed as festival

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